एकांत में रहने वाले इतिहासकार, डॉ. विजयराघवन, सदियों पुरानी एक तमिल गाथा के रहस्यमय छंदों में खोए हुए थे। उनके हाथों में पड़ी थी एक प्राचीन पांडुलिपि, जिसकी स्याही फीकी पड़ चुकी थी, पर शब्द अभी भी जीवंत थे, भूतिया और भयानक। इस गाथा में एक ऐसी देवी का वर्णन था जिसका नाम इतिहास के पन्नों से मिट गया था, एक ऐसी देवी जिसकी पूजा एक गुप्त संप्रदाय करता था। गाथा में बताए गए अनुष्ठानिक हत्याओं के विवरणों ने डॉ. विजयराघवन को झकझोर कर रख दिया था।
गाथा के अनुसार, इस गुप्त संप्रदाय के सदस्य हर साल एक विशिष्ट अनुष्ठान करते थे, जिसमें एक निर्दोष व्यक्ति की बलि देकर वे अपनी देवी को प्रसन्न करते थे। यह अनुष्ठान सदियों से चलता आ रहा था, लेकिन उसकी जानकारी सिर्फ इस गाथा के माध्यम से ही मिलती थी। डॉ. विजयराघवन ने इस रहस्य को उजागर करने का निश्चय किया। वह तमिलनाडु के उन दूर-दराज़ के गाँवों में जाने लगा, जहाँ इस संप्रदाय के होने की संभावना थी।
उनकी खोजों ने उन्हें प्राचीन मंदिरों के खंडहरों और गुप्त सुरंगों तक ले जाया। गाँव वालों ने उनके सवालों से बचने की कोशिश की, उनकी आँखों में एक ऐसा भय था जो डॉ. विजयराघवन के रोंगटे खड़े कर देता था। उन्हें धीरे-धीरे पता चला कि यह गुप्त संप्रदाय अभी भी मौजूद है, अपनी सदियों पुरानी परंपराओं को गुप्त रूप से निभाता हुआ।
डॉ. विजयराघवन ने गाथा में वर्णित अनुष्ठान स्थलों का पता लगाया, जहाँ जमीन अभी भी प्राचीन बलिदानों के निशानों से चिह्नित थी। उन्हें प्राचीन हड्डियों के अवशेष मिले, जिनकी जाँच करने पर पता चला कि वे उन लोगों के थे जिनका उल्लेख गाथा में था। प्रत्येक शव पर अजीबोगरीब प्रतीक चिह्नित थे, जो इस संप्रदाय के रहस्यमय प्रतीकों से मेल खाते थे।
एक दिन, डॉ. विजयराघवन को इस गुप्त संप्रदाय के नेता का पता चला। वह एक बुजुर्ग व्यक्ति था, जिसका नाम था 'मास्टर', जो खुद को देवी का पुजारी बताता था। मास्टर बेहद चालाक था, उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सा चमक थी जो डॉ. विजयराघवन को असहज कर देती थी।
डॉ. विजयराघवन ने मास्टर से मुलाक़ात की और उससे गाथा के बारे में पूछताछ की। मास्टर ने पहले तो इंकार किया, लेकिन डॉ. विजयराघवन के दृढ़ संकल्प ने उसे झुका दिया। मास्टर ने सच्चाई बताई, कैसे सदियों से यह संप्रदाय देवी की पूजा करता आया था, कैसे बलिदान उसकी प्रसन्नता का एक अभिन्न अंग थे। उसने बताया कि गाथा में वर्णित अनुष्ठान एक भयावह सच्चाई है, एक ऐसा षड्यंत्र जो पीढ़ियों से गुप्त रहने में सफल रहा था।
मास्टर ने यह भी बताया कि देवी की पूजा का उद्देश्य केवल प्रसन्नता ही नहीं बल्कि एक शक्तिशाली शक्ति प्राप्त करना भी था जो उन्हें दुनिया पर राज करने की क्षमता देती। इस शक्ति की प्राप्ति के लिए इंसानी बलि आवश्यक थी। यह जानकर डॉ. विजयराघवन स्तब्ध रह गया। उसे यह भी पता चला कि इस संप्रदाय का एक विशाल नेटवर्क है जो पूरे तमिलनाडु में फैला हुआ है।
डॉ. विजयराघवन ने इस रहस्य को दुनिया के सामने लाने का निर्णय लिया। उसने पुलिस को सारी जानकारी दी और संप्रदाय के सदस्यों को गिरफ्तार कराया गया। लेकिन यह आसान नहीं था। संप्रदाय के सदस्यों ने उस पर हमला किया, उसे खत्म करने की कोशिश की। लेकिन डॉ. विजयराघवन ने अपने डर को पीछे छोड़ दिया और सच्चाई के लिए लड़ता रहा।
अंत में, सच्चाई सामने आ गई। यह एक ऐसी कहानी थी जो सदियों से गुप्त रही, एक षड्यंत्र जो पीढ़ियों से चला आ रहा था। डॉ. विजयराघवन ने एक ऐसे खतरनाक रहस्य को उजागर किया जिसने तमिलनाडु के इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया। लेकिन उसके दिल में एक सवाल हमेशा बना रहा- क्या वह इस देवी और उसके संप्रदाय के सभी गुप्त रहस्यों को पूरी तरह से उजागर कर पाया था? या क्या कुछ रहस्य अभी भी अंधेरे में छिपे हुए हैं, इंतजार कर रहे हैं कि कोई और उन्हें खोजे?
डॉ. विजयराघवन की कहानी एक चेतावनी है, एक भयावह सत्य का अहसास, जो हमें बताता है कि इतिहास के पन्नों में कितने सारे अँधेरे राज दबे हुए हैं, इंतज़ार कर रहे हैं कि कोई उनकी खोज करे, और उनसे सामना करे।