सन्नाटा। सिर्फ़ बर्फ़ीली हवा की सरसराहट और दूर-दूर तक फैले हिमालय की खामोशी। एक टीम, पुरातत्वविदों की, उस खामोशी को तोड़ने आई थी। उनका मकसद था एक प्राचीन, लगभग भूले हुए रीति-रिवाजों के स्थल की खोज, एक जगह जहाँ समय ने अपनी परतें जमा रखी थीं। लेकिन जो उन्होंने खोजा, वो सिर्फ़ इतिहास की परतें नहीं थीं, बल्कि एक ऐसे श्राप का जागरण था जिसने सदियों से हिमालय की बर्फीली चोटियों में नींद सोई थी।
टीम के नेता, डॉक्टर अजय शर्मा, एक अनुभवी पुरातत्वविद् थे, जिनकी आँखों में खोज की तीव्र लालसा झलकती थी। उनके साथ थीं उनकी सहयोगी, डॉक्टर निशा राव, एक युवा, लेकिन प्रतिभाशाली भाषाविद्, जो प्राचीन लिपियों को समझने में माहिर थीं। इसके अलावा, उनके साथ थे दो शेरपा गाइड, नरेश और तेंजिंग, जो हिमालय की कठोर परिस्थितियों से पूरी तरह वाकिफ़ थे।
उच्च हिमालयी क्षेत्र में, बर्फ़ के बीच दबे, उन्होंने एक प्राचीन मंदिर के अवशेष खोजे। मंदिर के पत्थरों पर अजीबोगरीब चिह्न उकेरे हुए थे – चिह्न जो किसी भी ज्ञात भाषा से मेल नहीं खाते थे। डॉक्टर राव ने घंटों तक उन चिह्नों का अध्ययन किया, और आखिरकार, उन्हें कुछ समझ में आया। ये चिह्न एक प्राचीन संस्कृति की कहानी बयां कर रहे थे – एक संस्कृति जो हिमालय की बर्फ से ढकी पहाड़ियों में सदियों पहले रहती थी।
कहानी एक बर्फ की कन्या की थी – एक ऐसी महिला जो हिमालय की देवी के रूप में पूजी जाती थी। लेकिन उसका जीवन आसान नहीं था। उसे एक क्रूर राजा के प्यार में फँसाया गया था, जिसने उसकी आत्मा को कुचल दिया था। अपने दुःख और अपमान से तंग आकर, उसने अपने जीवन का अंत कर लिया, और उसके बाद से, उसकी आत्मा हिमालय की बर्फ़ में बंध गई। मंदिर के चिह्न उसके शाप की कहानी बता रहे थे – एक ऐसा शाप जो किसी भी बाहरी व्यक्ति को जो उस मंदिर को छेड़ता, तबाह कर देता।
शुरुआती उत्साह धीरे-धीरे डर में बदलने लगा। अजीब आवाज़ें सुनाई देने लगीं, बर्फ़ीली हवा में फुसफुसाहटें। रातें भयावह हो गईं। एक रात, नरेश ने एक सफ़ेद साड़ी वाली महिला को मंदिर के पास देखा – एक महिला जिसके बाल बर्फ़ की तरह सफ़ेद थे, और उसकी आँखें बर्फ़ से भी ज़्यादा ठंडी।
डॉक्टर शर्मा और उनकी टीम अब एक रहस्यमयी घटनाओं के जाल में फँस चुके थे। हर रोज़, उनके अनुभव अधिक भयावह होते गए। अजीबोगरीब सपने, अस्पष्टीकृत घटनाएँ, और एक बढ़ता हुआ भय जो उन्हें कभी भी अपनी गिरफ्त में ले सकता था। डॉक्टर राव ने खोजा कि प्राचीन ग्रंथों में एक अनुष्ठान का ज़िक्र है, एक ऐसा अनुष्ठान जिससे कन्या के शाप को शांत किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए एक बड़ी कीमत चुकानी होगी।
टीम के सदस्यों में मनोवैज्ञानिक तनाव बढ़ता जा रहा था। तेंजिंग ने मना कर दिया कि वो और आगे काम करे, क्योंकि वो हर रात भयानक सपने देख रहा था। नरेश तो पूरी तरह से भयभीत हो गया था और अपने गांव वापस जाने के लिए बेताब था। डॉक्टर शर्मा को एक निर्णय लेना था – क्या वो शोध जारी रखेंगे और हिमालयी बर्फ की कन्या के श्राप को भोगेंगे, या वो अपने और अपनी टीम की जान बचाने के लिए पीछे हटेंगे?
अंत में, डॉक्टर शर्मा और डॉक्टर राव ने प्राचीन अनुष्ठान को करने का निर्णय लिया। यह एक कठिन और जोखिम भरा निर्णय था, लेकिन वे अपनी खोज को अधूरा नहीं छोड़ना चाहते थे। उन्होंने एक रात मंदिर में अनुष्ठान किया। अनुष्ठान के दौरान, उन्होंने बर्फ की कन्या की आत्मा को सामने देखा। यह एक भयानक, लेकिन दर्दनाक दृश्य था। कन्या की आत्मा ने अपनी पीड़ा और क्रोध को व्यक्त किया, और डॉक्टर शर्मा और डॉक्टर राव को क्षमा करने के लिए राजी हो गयी।
श्राप टूट गया था। हिमालय की चोटियाँ फिर से शांत हो गई थीं। डॉक्टर शर्मा और डॉक्टर राव ने अपनी खोज को पूरा कर लिया था, लेकिन इस अनुभव ने उन्हें जीवन भर के लिए बदल दिया था। उन्होंने हिमालय की रहस्यमयी शक्ति और प्राचीन इतिहास की गहराई को महसूस किया था। यह एक ऐसा अनुभव था जिसे वे कभी नहीं भूल सकते थे। और यह सब कुछ, हिमालय की बर्फ की कन्या के भूले हुए श्राप की कहानी, एक सदा के लिए उनकी यादों में दर्ज हो गया।