रूपकुंड की रहस्यमयी झील: कंकालों का सागर और एक अनसुलझी पहेली

रूपकुंड की रहस्यमयी झील: कंकालों का सागर और एक अनसुलझी पहेली

हिमालय की ऊंची चोटियों के बीच, उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय में, एक ऐसी झील है जो सदियों से रहस्यों से भरी हुई है - रुपकुंड झील। इस झील की खासियत इसके किनारे और तल में बिखरे हुए सैकड़ों मानव कंकाल हैं, जो एक भयावह दृश्य प्रस्तुत करते हैं। ये कंकाल किसके हैं? क्या ये किसी प्राकृतिक आपदा के शिकार हुए थे या फिर किसी अलौकिक घटना का परिणाम हैं? यह सवाल सदियों से इतिहासकारों, वैज्ञानिकों और रहस्य प्रेमियों को परेशान करता रहा है।

स्थानीय लोककथाओं में, इन कंकालों को राजा जसधवल और उनकी गर्भवती रानी बलम्पा की कहानी से जोड़ा जाता है, जो नंदा देवी की तीर्थयात्रा पर निकले थे। कहा जाता है कि उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान उत्सव और संगीत का आयोजन किया, जिससे देवी क्रोधित हो गईं और उन्होंने उन पर ओलों का प्रहार किया, जिससे सभी की मृत्यु हो गई। यह कहानी इस स्थान की पवित्रता और देवी के प्रकोप की चेतावनी देती है।

हालांकि, वैज्ञानिक जांच ने इस रहस्य को और भी गहरा कर दिया है। 1942 में एक ब्रिटिश फॉरेस्ट रेंजर द्वारा इन कंकालों की खोज के बाद, कई अध्ययन किए गए हैं। शुरुआती अध्ययनों में यह माना गया था कि ये कंकाल किसी एक ही समूह के लोगों के हैं, जो शायद किसी महामारी या सैन्य अभियान के दौरान मारे गए थे। लेकिन 2004 में हुए एक अध्ययन ने इस धारणा को बदल दिया। डीएनए विश्लेषण से पता चला कि ये कंकाल अलग-अलग आनुवंशिक समूहों के हैं और उनकी मृत्यु भी अलग-अलग समय पर हुई है।

सबसे चौंकाने वाला खुलासा 2019 में हुआ, जब एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने इन कंकालों का जीनोमिक विश्लेषण किया। इस अध्ययन से पता चला कि इन कंकालों में से कुछ दक्षिण एशिया के लोगों के हैं, जिनकी मृत्यु 7वीं से 10वीं शताब्दी के बीच हुई थी, जबकि कुछ कंकाल पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र (संभवतः ग्रीस या क्रेते) के लोगों के हैं, जिनकी मृत्यु 17वीं से 20वीं शताब्दी के बीच हुई थी। यह खोज इस रहस्य को और भी जटिल बना देती है। ये लोग इतने अलग-अलग समय और स्थानों से यहां कैसे पहुंचे? और उनकी मृत्यु का कारण क्या था?

एक सिद्धांत यह है कि ये लोग तीर्थयात्री थे, जो नंदा देवी राज जात यात्रा पर निकले थे, जो हर 12 साल में एक बार होती है। शायद वे किसी अचानक आए बर्फीले तूफान या ओलावृष्टि में फंस गए होंगे, जैसा कि लोककथाओं में भी बताया गया है। खोपड़ियों पर पाए गए फ्रैक्चर भी इस सिद्धांत का समर्थन करते हैं, जो किसी बड़ी, गोल वस्तु से टकराने के कारण हो सकते हैं, जैसे कि बड़े ओले।

लेकिन भूमध्यसागरीय लोगों की उपस्थिति इस सिद्धांत से मेल नहीं खाती। वे यहां क्यों आए थे? क्या वे व्यापारी थे, या फिर किसी अज्ञात मिशन पर थे? इस सवाल का जवाब अभी भी किसी के पास नहीं है।

आज भी, रुपकुंड झील एक अनसुलझी पहेली बनी हुई है। यह एक ऐसा स्थान है जहां इतिहास, विज्ञान और लोककथाएं एक साथ मिलती हैं। यह हमें याद दिलाता है कि प्रकृति के रहस्यों के सामने हम कितने छोटे हैं। हर साल, जब बर्फ पिघलती है, तो ये कंकाल फिर से दिखाई देते हैं, और हमें अपनी अधूरी कहानियों से रूबरू कराते हैं। शायद कुछ रहस्य ऐसे होते हैं, जिन्हें समय के गर्भ में ही रहना चाहिए, ताकि वे हमें हमेशा अपनी ओर आकर्षित करते रहें।


Tags: Roopkund Lake Skeletons Mystery Himalayas Indian Folklore Horror Unsolved Mystery

Related Articles