वाराणसी की प्राचीन गलियों में, जहां समय की धारा गंगा के प्रवाह के साथ बहती है, एक एकांत विद्वान, डॉक्टर अजय शर्मा, अपने शोध में खोया हुआ था। वह वर्षों से प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन कर रहा था, उन रहस्यों की खोज में जो इस पवित्र नगर के इतिहास में दबे हुए थे। एक दिन, उसे एक धूल से भरा हुआ, पुराना तांत्रिक ग्रंथ मिला, जिसके पन्नों पर समय के निशान साफ दिखाई दे रहे थे। ग्रंथ में एक भयावह कथा थी, जो गंगा के वार्षिक बाढ़ और एक क्रूर बलिदान चक्र से जुड़ी हुई थी।
ग्रंथ के अनुसार, प्रत्येक सौ साल में, जब गंगा का जल अपने उफान पर होता है, तो एक विशेष अनुष्ठान किया जाता था, जिसमें एक निर्दोष व्यक्ति की बलि दी जाती थी। यह बलिदान गंगा को प्रसन्न करने और उसकी क्रूरता को शांत करने के लिए किया जाता था। लेकिन यह अनुष्ठान कोई साधारण अनुष्ठान नहीं था, बल्कि एक भयावह तांत्रिक क्रिया थी, जो शक्तिशाली आत्माओं को जागृत करती थी और पूरे शहर पर भयावह छाया डालती थी।
डॉक्टर शर्मा ने ग्रंथ में दिए गए विवरणों को सावधानीपूर्वक पढ़ा। उसने पुराने मानचित्र, पहेलियों और गुप्त कोडों को सुलझाया, जो इस बलिदान चक्र की ओर इशारा करते थे। उसने महसूस किया कि यह केवल एक किंवदंती नहीं थी, बल्कि एक भयानक वास्तविकता थी, जो सौ सालों के बाद फिर से शुरू होने वाली थी। गंगा के अगले बाढ़ के साथ, यह बलिदान चक्र फिर से शुरू होने वाला था।
डॉक्टर शर्मा के सामने एक भयावह चुनौती थी। उसे इस तांत्रिक अनुष्ठान को रोकना था, इससे पहले कि यह फिर से शुरू हो। लेकिन उसे समय बहुत कम था। वह वाराणसी की पुरानी गलियों में, प्राचीन मंदिरों और गुप्त स्थानों में भाग रहा था, जहां उसे पुराने साधकों और तांत्रिकों के संकेत मिल रहे थे। वह एक दौड़ में था, समय के साथ एक दौड़, जिसमें जीत और हार का फैसला जीवन और मृत्यु से जुड़ा हुआ था।
अपने शोध में, डॉक्टर शर्मा ने पाया कि इस बलिदान में एक विशेष प्रकार का पत्थर इस्तेमाल किया जाता था, जो गंगा के तट पर ही पाया जाता था। यह पत्थर अनुष्ठान के लिए आवश्यक था, और इसके बिना अनुष्ठान पूरा नहीं हो सकता था। डॉक्टर शर्मा को इस पत्थर को ढूंढना था और उसे अनुष्ठान से पहले ही नष्ट करना था।
वाराणसी की गलियों में, डॉक्टर शर्मा कई खतरों से गुजरा। उसे गुप्त समाजों, तांत्रिकों और उन लोगों का सामना करना पड़ा, जो इस बलिदान चक्र को जारी रखना चाहते थे। उसे अपनी बुद्धि और साहस का उपयोग करके इन खतरों का सामना करना पड़ा। वह कई बार मौत के करीब पहुँच गया, लेकिन उसने अपनी खोज जारी रखी।
अंततः, डॉक्टर शर्मा ने उस विशेष पत्थर को ढूंढ लिया, जो गंगा के तट पर एक गुप्त स्थान पर छिपा हुआ था। उसने पत्थर को नष्ट कर दिया, जिससे तांत्रिक अनुष्ठान को रोक दिया गया। गंगा का बाढ़ आया, लेकिन इस बार कोई बलिदान नहीं हुआ। डॉक्टर शर्मा ने वाराणसी को एक भयावह विनाश से बचा लिया था।
लेकिन डॉक्टर शर्मा की कहानी यहीं खत्म नहीं होती है। उसने पाया कि यह बलिदान चक्र केवल वाराणसी तक ही सीमित नहीं था, बल्कि यह पूरे भारत में फैला हुआ था। उसके सामने एक नई चुनौती थी, एक नई खोज, जो उसे पूरे देश में ले जाएगी, जहां उसे प्राचीन रहस्यों और भयावह सच्चाइयों का सामना करना होगा।
डॉक्टर शर्मा की कहानी, गंगा के श्राप की कहानी, एक रहस्यमय यात्रा है, जो प्राचीन तांत्रिक अनुष्ठानों, भयावह बलिदानों और गंगा नदी के प्राचीन रहस्यों से भरी हुई है। यह एक ऐसी कहानी है, जो आपको डराएगी, हैरान करेगी और सोचने पर मजबूर करेगी।