केरल के हरे-भरे बैकवाटर, जहां नारियल के पेड़ों की छाया में शांत झीलें फैली हैं, एक रहस्यमयी घटनाओं का गढ़ रहा है। वर्षों से, अनेक लोग इन शांत जलमार्गों में गायब हो गए हैं, बिना किसी निशान के, जैसे कि वे धरती से ही ओझल हो गए हों। इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश में एक एकांतप्रिय विद्वान, डॉ. अजय शर्मा, एक प्राचीन पांडुलिपि का पता लगाता है, जो सदियों पुरानी एक भयावह साज़िश से पर्दा उठाती है।
डॉ. शर्मा, एक प्रतिष्ठित पुरातत्वविद्, अपने शोध के लिए केरल के एकांत गाँव में रहते थे। उनका जीवन शांत और एकाकी था, केवल पुस्तकों और प्राचीन ग्रंथों की संगति ही उनका साथी थी। एक दिन, एक पुराने मंदिर के खंडहरों में खुदाई करते हुए, उन्हें एक पुराना ताम्रपत्र मिला। यह पांडुलिपि, खंडित और क्षतिग्रस्त अवस्था में थी, लेकिन फिर भी इसके पृष्ठों में एक कहानी छिपी थी, जो सदियों से गुप्त रही थी।
पांडुलिपि में एक भयावह अनुष्ठान का वर्णन था, जिसे 'नागमणि का श्राप' कहा जाता था। इस अनुष्ठान में, एक प्राचीन नागमणि का उपयोग करके, एक व्यक्ति को 'मृतकों की दुनिया' में भेज दिया जाता था, जहां उसे अनंत पीड़ा झेलनी पड़ती थी। इस अनुष्ठान का उद्देश्य, पांडुलिपि के अनुसार, किसी दुश्मन का बदला लेना या किसी शाप को पूरा करना था।
पांडुलिपि के आगे के पृष्ठों में, डॉ. शर्मा को एक भयावह तथ्य का पता चला। ये बैकवाटर में हुई सभी गायबियां, इसी 'नागमणि के श्राप' से जुड़ी हुई थीं। हर गायब हुए व्यक्ति से पहले, किसी न किसी तरह का झगड़ा या विवाद हुआ था। शापित नागमणि, अपने शिकार को एक अदृश्य बल के द्वारा अपने में समेट लेती थी और फिर उसकी आत्मा को मृतकों के दलदल में भेज देती थी।
डॉ. शर्मा ने पांडुलिपि की जांच में और गहराई से प्रवेश किया। उसे पता चला कि यह अनुष्ठान एक गुप्त समाज द्वारा सदियों से किया जाता रहा था, जो बैकवाटर के आस-पास के गाँवों में फैला हुआ था। इस समाज के सदस्य, अपनी पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं को बचाने के लिए, इस भयावह अनुष्ठान को गुप्त रूप से करते थे।
अपनी खोजों से डरे हुए, फिर भी जिज्ञासु, डॉ. शर्मा ने इस समाज के सदस्यों को ढूंढने का फैसला किया। उन्होंने कई गाँवों और मंदिरों की यात्रा की, स्थानीय लोगों से बात की और प्राचीन किंवदंतियों को खंगाला। धीरे-धीरे, उन्हें इस गुप्त समाज के बारे में कुछ सुराग मिले।
एक रात, डॉ. शर्मा को एक प्राचीन मंदिर में एक गुप्त मार्ग का पता चला। इस मार्ग से आगे बढ़ने पर, उसे एक विशाल गुफा मिली, जहां इस गुप्त समाज के सदस्य रहते थे। वहां उन्होंने देखा कि नागमणि एक चमकदार, नीले रंग के पत्थर में रखी हुई थी, जो एक भयावह चमक से चमक रही थी।
डॉ. शर्मा की उपस्थिति से समाज के सदस्यों को पता चल गया। उन्होंने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन डॉ. शर्मा, अपने ज्ञान और चतुराई से बच निकला। हालांकि, वह नागमणि को ले जाने में असफल रहा। इसके बाद, वह समझ गया कि यह शापित पत्थर केवल उसे नहीं, बल्कि उन सबको निशाना बना सकता है जो उससे जुड़ते हैं।
डॉ. शर्मा ने पांडुलिपि में लिखे तरीके से, नागमणि को शांत करने के लिए एक प्राचीन अनुष्ठान करने का फैसला किया। यह एक जोखिम भरा काम था, लेकिन उसे पता था कि अगर उसने यह नहीं किया, तो बैकवाटर में और लोग गायब होते रहेंगे।
अनुष्ठान के दौरान, डॉ. शर्मा को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। गुफा के अंदर भयावह आवाजें गूंजती थीं, और अदृश्य शक्तियां उसे रोकने की कोशिश करती थीं। लेकिन अपनी हिम्मत और ज्ञान के दम पर, वह अनुष्ठान को पूरा करने में सफल रहा। नागमणि की चमक धीरे-धीरे कम हुई, और गुफा में एक शांति छा गई।
डॉ. शर्मा ने नागमणि को सुरक्षित स्थान पर रख दिया, और इस गुप्त समाज के सदस्यों को कानून के हवाले कर दिया गया। इसके बाद, बैकवाटर में गायबियां बंद हो गईं, और शांत जलमार्गों में फिर से शांति लौट आई। लेकिन डॉ. शर्मा के मन में हमेशा यह सवाल बना रहा कि क्या इस श्राप की कहानी का अंत यहीं पर हुआ या यह कहीं और भी जारी है?